(सर्दियों का मंज़र-नामा )
शाम भी थी धुआं -धुआं हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियां याद सी आ के रह गईं (फ़िराक़)
नसीब सोहबत-ए-याराँ नहीं तो क्या कीजे
ये रक्स-ए-साया-ए-सर्व-ओ-चिनार का मौसम (फ़ैज़ )
ये ठिठुरी हुई लम्बी रातें कुछ पूछती हैं
ये खामशी-ए-आवाज़-नुमा कुछ कहती है
जब रात को तारे बारी - बारी जागते हैं
कई डूबे हुए तारों की निदा कुछ कहती है (नासिर काज़मी )
बर्फ़बारी में तेरे क़ुर्ब की इक रात मिले
मेरे ख़ुरशीद बदन धूप की सौग़ात मिले (-------- )
ये सर्द रात ये तन्हाईयाँ ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर गए होते (-------- )
बर्फ सी उजली पोशाक पहने हुए पेड़ जैसे दुआओं में मसरूफ हैं
वादियाँ पाक मरियम का आँचल हुईं आओ सजदा करें सर झुकाएं कहीं
(बशीर बद्र )
मत कहो आकाश पर कोहरा घना है
ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है (दुष्यंत कुमार )
नए साल ने टांक दिए हैं फूल फ़ज़ा के आँचल में
फुटपाथों पर ठिठुर रही है रात पुराने कम्बल में (आमिर रियाज़ )
No comments:
Post a Comment