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Monday, January 16, 2012

चकले/साहिर लुधियानवी


(साहिर लुधियानवी की ये मशहूर नज़्म "चकले" हाल ही में उस वक़्त दोबारा चर्चा में आई जब  सुप्रीम कोर्ट में सेक्स वर्कर्स से मुताल्लिक़ एक अहम् फैसले में  जस्टिस काटजू ने इसकी चन्द लाईनों को क्वोट किया-तकरीबन पचास साल पहले गुरु दत्त ने क्लासिकल फिल्म "प्यासा" में इस नज़्म का खूबसूरत इस्तेमाल किया था-मुहम्मद रफ़ी की गई हुई फिल्म प्यासा की नज़्म में अस्ल नज़्म का एक मिस्रा (पंक्ति ) "सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं" बदल कर "जिन्हें नाज़  है हिंद पर वो कहाँ हैं" कर दिया गया था जो अस्ल मिसरे का लगभग तर्जुमा है-
हालांकि आज की सेक्स वर्कर पुराने ज़माने की तवायफ़ की तरह नितांत मजबूर और निरीह नहीं है, और ये एक कड़वी सच्चाई है कि मौजूदा दौर में सेक्स वर्कर्स की बड़ी तादाद किसी दबाव के बगैर सिर्फ पैसा कमाने या विलासपूर्ण जिंदगी गुज़ारने के लिए ख़ुफ़िया तरीके से अपना कारोबार चलाती हैं, मगर ऐसी बदक़िस्मत औरतों की भी कमी नहीं है जिन्हें उमराव जान जैसी त्रासदी से गुज़र कर इस पेशे को अपनाना पड़ा-बहर हाल आज की        सेक्स वर्कर्स हों या पुराने ज़माने की तवायफें दोनों मर्दों की बनाई हुई दुनिया की शिकार हैं चाहे ख़ुशी से हों या मजबूरी से-इस लिहाज़ से  "चकले" जैसी नज्मों की प्रासंगिकता हमेश बनी रहे गी- )

चकले  


ये  कूचे  ये  नीलामघर  दिलक़शी  के 
ये   लुटते   हुए   कारवाँ   ज़िंदगी  के
कहां  हैं  कहां  हैं  मुहाफ़िज़  ख़ुदी  के
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|


ये पुर-पेच  गलियां ये  बेख़्वाब बाज़ार
ये गुमनाम राही ये सिक्कों की झंकार
ये  इस्मत  के सौदे ये सौदों पे तकरार
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|


तअफ्फुन  से पुर नीम-रौशन ये गलियां
ये  मसली  हुई अध-खिली ज़र्द कलियां
ये  बिकती   हुई   खोखली   रंग रलियां
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|


वो  उजले  दरीचों  में  पायल  की छनछन
तऩफ्फ़ुस की उलझन पे तबले की धनधन
ये  बे रूह  कमरों  में  खांसी  की  ठन ठन 
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|


ये  गूंजे  हुए  क़हक़हे   रास्तों   पर
ये चारों तरफ भीड़ सी खिड़कियों पर
ये  आवाज़े  खिंचते  हुए आंचलों पर
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|


ये  फूलों  के गजरे ये पीकों के छींटे
ये  बेबाक़ नज़रें  ये गुस्ताख़ फ़िक़रे
ये ढलके बदन और ये मदक़ूक़ चेहरे
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|


ये भूखी निगाहें  हसीनों की जानिब
ये बढ़ते हुए हाथ  सीनों की जानिब
लपकते हुए पांव  ज़ीनों की जानिब
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|


यहां  पीर  भी आ  चुके हैं जवां भी
तनूमंद  बेटे  भी  अब्बा  मियां भी
ये बीवी भी है और बहन भी है माँ भी
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|


मदद  चाहती  है  ये  हव्वा की  बेटी
यशोदा  की हम-जिन्स राधा की बेटी
पयम्बर की उम्मत  ज़ुलेख़ा की बेटी
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं|


ज़रा  मुल्क़  के  रहबरों  को  बुलाओ
ये  कूचे  ये गलियां ये मंज़र दिखाओ
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ को लाओ
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं| 

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मुश्किल अल्फाज़---- पुर-पेच  ...टेढ़ी मेढ़ी  ,  तअफ्फुन ...दुर्गन्ध , पुर   ...भरी हुई  , नीम-रौशन  ...अर्ध प्रकाशित , तऩफ्फ़ुस  ...साँसें  , आवाज़े   ...कटाक्ष  ,  मदक़ूक़ ...पीले  , तनूमंद  ...तंदुरुस्त , हम-जिन्स   ...लैंगिक  रूप से समान 

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