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Sunday, October 30, 2011

तराना / डॉ इकबाल

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा 
हम बुलबुले है इसकी ये गुलसितां  हमारा

ग़ुरबत मे हो अगर हम रहता है दिल वतन मे
समझो वही हमे भी दिल है जहाँ हमारा 
परबत वो सब से ऊंचा हमसाया आसमाँ का
वो संतरी  हमारा वो पासबाँ हमारा 
गोदी मे खेलती है इसकी हजारो नदियाँ 
गुलशन है जिनके दम से रश्क-ए-जनां हमारा 
ऐ आब ए रूद ए गंगा वो दिन है याद तुझको
उतरा   तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा 
मज़हब   नही सिखाता आपस मे बैर रखना
हिंदी   है हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा 
युनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नामो-निशाँ हमारा 
कुछ बात है की हस्ती मिटती नही हमारी
सदियों  रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़मां हमारा 
इक़्बाल कोइ महरम  अपना नहीं  जहाँ मे
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ  हमारा 

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